चलने का हौसला नहीं रुकना मुहाल कर दिए
इश्क़ के इस सफर ने तो मुझको निढाल कर दिए
मिलते हुए दिलों के बीच और था फैसला कोई
उसने मगर बिछड़ते वक़्त और एक सवाल कर दिया
उसने मगर बिछड़ते वक़्त और एक सवाल कर दिया
ऐ मेरी गुल ज़मीन तुझे चाहए थी इक किताब
एहले-ऐ-किताब ने मगर क्या तेरा हाल कर दिया
एहले-ऐ-किताब ने मगर क्या तेरा हाल कर दिया
मुमकिन फैसलों में इक हिज्र का फैसला भी था
हम ने तो एक बात की उसने कमाल कर दिया
हम ने तो एक बात की उसने कमाल कर दिया
मेरे लबों पे मोहर थी , पर मेरे शीशा रू ने तो
शहर के शहर को मेरा वाक़िफ़ -ऐ -हाल कर दिए
शहर के शहर को मेरा वाक़िफ़ -ऐ -हाल कर दिए
चेहरा और नाम एक साथ आज न याद आ सके
वक़्त ने किस शबीह को ख्वाब -ओ-ख्याल कर दिया
वक़्त ने किस शबीह को ख्वाब -ओ-ख्याल कर दिया
मुद्दतों बाद उसने आज मुझसे कोई गिला किया
मनसब -ऐ -दिलबरी पे क्या मुझको बहाल कर दिए
मनसब -ऐ -दिलबरी पे क्या मुझको बहाल कर दिए
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